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ग़ज़ल
हज़ार वा'दे किए हैं तुम ने कभी किसी को वफ़ा न करना
चलो उसी पर जो ग़ैर कह दें कहीं हमारा कहा न करना
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
जितने क़िस्से हैं मिरे शिकवा-ए-बेदाद हैं सब
ज़िक्र काहे को हैं अफ़साना-ए-फ़र्याद हैं सब
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
फ़लक पर जलता बुझता इक सितारा था वो मैं था
उमीद-ओ-यास का जो शख़्स मारा था वो मैं था
एख़लाक़ अहमद एख़लाक़
ग़ज़ल
शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए
कभी लिपटे बन के वो चाँदनी कभी चाँद बन के जुदा हुए
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
ख़ुदा के वास्ते कुछ दिन हो मेहरबाँ सय्याद
न कर बहार में मुझ को रवाँ-दवाँ सय्याद